Posts

Showing posts from July, 2025

Geeta Gyan

 अध्याय 1: अर्जुन-विषाद योग (Arjuna's Sorrow) यह अध्याय युद्ध के मैदान में अर्जुन की दुविधा और निराशा को दर्शाता है। अपने ही बंधु-बांधवों को सामने देखकर अर्जुन मोहग्रस्त हो जाता है और युद्ध करने से मना कर देता है। वह अपने कर्तव्य से विमुख होकर कृष्ण के सामने अपनी व्यथा प्रकट करता है। अध्याय 2: सांख्य योग (The Yoga of Knowledge) यह गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता का ज्ञान देते हैं। वे बताते हैं कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा शाश्वत और अविनाशी है। इस ज्ञान के आधार पर वे अर्जुन को शोक न करने और अपने स्वधर्म (क्षत्रिय धर्म) का पालन करते हुए युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं। यहाँ कर्म योग (बिना फल की इच्छा के कर्म करना) की नींव भी रखी जाती है। अध्याय 3: कर्म योग (The Yoga of Action) इस अध्याय में कृष्ण बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए एक क्षण भी नहीं रह सकता। वे निष्कपट कर्म (निस्वार्थ कर्म) के महत्व पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि कर्म को अनासक्त भाव से करना चाहिए, लोक-संग्रह (समाज का कल्याण) के लिए करना चाहिए, न कि व्य...